नास्तिक ओर आस्तिक में क्या अंतर है
आस्तिक:-जिसको ईश्वर में आस्था होती है जो भगवान को पूर्ण विस्वास के साथ मानता है कि परमात्मा है।
नास्तिक:-इसके विपरीत जो ईश्वर को नही मानता है ,भगवान को बिल्कुल ही नही मानता है,वह व्यक्ति नास्तिक बन जाता है।उसको किसी बात का भय भी नही होता है फिर वह इसी कारण अपराध करने लग जाता है।
नास्तिक क्यो बन जाते हैं लोग आखिर:-
सबसे पहला कारण अज्ञानता, जिसको ज्ञान नहीं होता है वह अज्ञानता में कुछ भी कर बैठता है और फिर। भौतिक शिक्षा का इतना प्रभाव हो गया मनुष्य पर कि सब कुछ भूल बैठा है।
पहले के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैथे, भगवान से डरकर हर कार्य करते थे, आज सब कुछ विपरीत हो रहा है। इस भौतिक शिक्षा ने लोगो को बदल दिया है। इस कारण भी मनुष्य नास्तिक बन गया है, वह आज अपने सधग्रन्थों को भी नही मानता है।
शास्त्र विरुद्ध साधना से भी नास्तिक बन जाता है मनुष्य:- अन्ध श्रद्धा भक्ति के कारण भी लोग नास्तिक बन जाते है,क्योंकि जब तक सतभक्ति नही करता उसको कोई लाभ नही मिलता है। फिर वह सभी साधना करके थक जाता है ओर फिर वह नास्तिक बन जाता है,उसको पता नही रहता पूर्ण परमात्मा कौन हैं, किसकी भक्ति करनी चाहिए और कैसे करनी चाहिए।
आस्तिक:-जिसको ईश्वर में आस्था होती है जो भगवान को पूर्ण विस्वास के साथ मानता है कि परमात्मा है।
नास्तिक:-इसके विपरीत जो ईश्वर को नही मानता है ,भगवान को बिल्कुल ही नही मानता है,वह व्यक्ति नास्तिक बन जाता है।उसको किसी बात का भय भी नही होता है फिर वह इसी कारण अपराध करने लग जाता है।
नास्तिक क्यो बन जाते हैं लोग आखिर:-
सबसे पहला कारण अज्ञानता, जिसको ज्ञान नहीं होता है वह अज्ञानता में कुछ भी कर बैठता है और फिर। भौतिक शिक्षा का इतना प्रभाव हो गया मनुष्य पर कि सब कुछ भूल बैठा है।
पहले के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैथे, भगवान से डरकर हर कार्य करते थे, आज सब कुछ विपरीत हो रहा है। इस भौतिक शिक्षा ने लोगो को बदल दिया है। इस कारण भी मनुष्य नास्तिक बन गया है, वह आज अपने सधग्रन्थों को भी नही मानता है।
शास्त्र विरुद्ध साधना से भी नास्तिक बन जाता है मनुष्य:- अन्ध श्रद्धा भक्ति के कारण भी लोग नास्तिक बन जाते है,क्योंकि जब तक सतभक्ति नही करता उसको कोई लाभ नही मिलता है। फिर वह सभी साधना करके थक जाता है ओर फिर वह नास्तिक बन जाता है,उसको पता नही रहता पूर्ण परमात्मा कौन हैं, किसकी भक्ति करनी चाहिए और कैसे करनी चाहिए।
सतभक्ति क्या है
सतभक्ति शास्त्रो अनुकूल की जाती है और सतभक्ति का सम्पूर्ण ज्ञान तत्वदर्शी सन्त ही बताया करता है
जो शास्त्र विरुद्ध साधना करते हैं उसके बारे में गीता में भी बताया गया है
आज हम जो साधनाएं कर रहे हैं वह सब गलत है गीता के अध्याय 16 के श्लोक 23 24 में बताया है कि जो साधक मनमानी पूजा करता है ना तो उसकी गति होती है ना कोई सुख मिलता है और ना ही मोक्ष प्राप्त करता है
वेदों में भी प्रमाण है
सतभक्ति से अद्धभुत लाभ
संत रामपाल जी महाराज सत्संग में बताते हैं कि शास्त्र विधि अनुसार सचे नाम का स्मरण करने से साधक के पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे कि सूखी घास में अग्नि लगने से वह नष्ट हो जाती है
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